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टर्मिनस / अनंत कुमार पाषाण

15 bytes added, 18:50, 3 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अनंत कुमार पाषाण
}}
{{KKCatKavita}}<poem>दो तेज रेलगाडियों की तरह
हम एक-दूसरे के पास से गुजर गए,
एक की लम्बाई से दूसरे की लम्बाई नप गई।
जहां रेलगाडियां
सभी रुक जाती हैं।
 
 
</poem>
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