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कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण
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10:19, 4 नवम्बर 2009
सदियों बाद
दो
गोलार्धों
गोलाद्धों
के बीच
झूमते एक मोती में ।
</poem>
अनिल जनविजय
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