{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार : नरेंन्द्र =नरेन्द्र मोहन }}{{KKCatKavita}}<poem>
मेरे साथ-साथ
भाग रहा
जंगल
दोनों तरफ
और मैं सीधा सुरक्षित रास्ता छोड़
भाग जाना चाहता हूँ
जंगल में
एक जंगल चित्र में
एक चित्र से बाहर
मैं बाहर आ खड़ा हुआ हूँ चित्र से
जंगल में
कौन है यहाँ मेरा सगा
पुकारता मुझे !
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