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04:47, 8 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>छोटी पोखरी में
छोटी जाति के बगले
मछलियाँ पकड़ने के ध्यान में
अलग अलग/ एक एक पाँव पर
खड़े हैं, ज्यों मछली दिखी
उसे फुर्ती से लपक लिया
फिर एक पाँव पर खड़े दिखे
बड़ी जाति के बगले
बडे पोखरों की तलाश करते हैं
शक्ति भर परिश्रम करने में
कोई कोताही नहीं करता,
सब अपना पेट भरने में
लगे रहते हैं।
6.10.2002</poem>