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02:48, 12 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>गूलर खूब फली थी
कच्चे फल अभी अधिक थे
पकना शुरू हो गया था
इसी स्थिति में
गूलर के पेड़ के पास
एक बंदर आया
बंदर भूखा था
उसने पके फल तोड़े और खाए
कच्चे फल भी तोड़ॆ
दाँत से काटा और फेंक दिया
डालों को हिलाया
पके फलों को जहाँ तहाँ गिराया
कुत्ते, घूमंतू कुछ, आ गए
बंदर को देखा तो डाँटने लगे उसे--भौं भौं
बंदर फुर्तीला था, ऊँची डाल देख कर
जा चढा। कुत्तों को चिढाने लगा।
डाल डाल होते हुए बंदर कहीं और गया
कुत्ते सूंघ सूंघ कर फलाहार करने लगे।
22.11.2002</poem>