875 bytes added,
07:24, 5 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= हसरत मोहानी
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई
मैं बे-क़सूर भी कह दूँ कि हाँ ज़रूर हुई
नज़र को ताबे-तमाशाए-हुस्ने यार<ref >प्रिय-दर्शन की शक्ति</ref> कहाँ
ये इस ग़रीब को तम्बीहे-बेक़सूर<ref >बेक़सूर डाँट</ref> हुई
तुफ़ैले-इश्क<ref >प्रेम का फल</ref> है 'हसरत' ये सब मेरे नज़दीक
तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई
</poem>
{{KKMeaning }}