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<poem>
इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक
है पर खोले हुमा<ref> </ref>एक परिन्दा जिसका साया जिस पर पड़े वो बादशाह बन जाता </ref>फ़लक़ तक
कब पैरवी-ए-ज़माना होती