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इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक / कृश्न कुमार 'तूर'
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13:37, 24 दिसम्बर 2009
<poem>
इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक
है पर खोले हुमा<
ref> </
ref>एक परिन्दा जिसका साया जिस पर पड़े वो बादशाह बन जाता </ref>फ़लक़ तक
कब पैरवी-ए-ज़माना होती
द्विजेन्द्र द्विज
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