भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक / कृश्न कुमार 'तूर'
Kavita Kosh से
इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक
है पर खोले हुमा<ref>एक परिन्दा जिसका साया जिस पर पड़े वो बादशाह बन जाता </ref>फ़लक़ तक
कब पैरवी-ए-ज़माना होती
वैसे तो हैं नक़्शे-पा फ़लक़ तक
कुछ कम असरे-जुनूँ न समझो
जाता है ये रास्ता फ़लक़ तक
फेरेगा रुख़ ये जाँ ही लेकर
है सैले-ग़मे फ़ना फ़लक़ तक
हर सम्त अना ज़हूर पर है
रौशनी है क़ुतुब नुमा फ़लक़ तक
बार-आवर हो न हो ज़मीं पर
जाती है मेरी दुआ फ़लक़ तक
इस उम्रे-रवाँ की बात क्या है
है ‘तूर’ गुरेज़-पा फ़लक़ तक
शब्दार्थ
<references/>