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सरनामा-ए-गुमाँ नज़री / कृश्न कुमार 'तूर'
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सरनामा-ए-गुमाँ नज़री
रचनाकार | कृश्न कुमार 'तूर' |
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प्रकाशक | |
वर्ष | 2005 |
भाषा | उर्दू |
विषय | ग़ज़ल संग्रह(शेरी मज्मूआ) |
विधा | |
पृष्ठ | 160 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- अब सामने लाएँ आईना क्या / कृश्न कुमार 'तूर'
- तेरे फ़िराक़ में जितनी भी अश्कबारी की / कृश्न कुमार 'तूर'
- है बार आँखों पे क्या-क्या मेरे ख़ुदा मेरे रब / कृश्न कुमार 'तूर'
- खुला हुआ है दरे-इल्तिजा ख़बर ही न थी / कृश्न कुमार 'तूर'
- नवाहे-जाँ थी मुअत्तर दुआ से पहले भी / कृश्न कुमार 'तूर'
- जुनूँ की सोख़्ता सामानियों से / कृश्न कुमार 'तूर'
- न उसको देखा न ताबो-तवाँ रवाना किए / कृश्न कुमार 'तूर'
- मैं नमक की तरह घुल गया हूँ / कृश्न कुमार 'तूर'
- सुनो तो नामे-ख़ुदा भी है तोहफ़ा-ए-दरवेश / कृश्न कुमार 'तूर'
- ये दिल तो सोख़्ता सामानियों पे रखते हैं / कृश्न कुमार 'तूर'
- दिल के रोज़न बन्द हैं हर्फ़े-दुआ खुलता नहीं / कृश्न कुमार 'तूर'
- ख़ुद अपनी ज़ात का शायद सुराग़ रख दिया है / कृश्न कुमार 'तूर'
- हम अपने आपको ज़ंजीर करना चाहते हैं / कृश्न कुमार 'तूर'
- है किसका नक़्शे-क़फ़े-पा भला सितारा-ए-शाम / कृश्न कुमार 'तूर'
- कुशादगी पे कहाँ सायते-असर हर रोज़ / कृश्न कुमार 'तूर'
- इम्काने-असर दुआ फ़लक़ तक / कृश्न कुमार 'तूर'
- अँधेरा कम है जुनूँ में कि रौशनी है बहुत / कृश्न कुमार 'तूर'
- मैं देखता हूँ जिसे सायते-गिराँ है वो शय / कृश्न कुमार 'तूर'
- नज़र उठाई और अपना असीर कर डाला / कृश्न कुमार 'तूर'
- जहाँ पे गुम है मिलेगा वहीं सुराग़ उसका / कृश्न कुमार 'तूर'
- जहाँ समेट रहा है मुझे कहाँ से अलग / कृश्न कुमार 'तूर'
- बस अब तो यह एहतमाम करना / कृश्न कुमार 'तूर'
- घने अँधेरों में क़ायम यही ज़िया है एक / कृश्न कुमार 'तूर'
- बड़ी चमक पे हो ऐसा लहू ज़रूरी है / कृश्न कुमार 'तूर'