जहाँ पे गुम है मिलेगा वहीं सुराग़ उसका / कृश्न कुमार 'तूर'


रहा सबाते-गुमाँ ला-यक़ीं सुराग़ उसका
जहाँ पे गुम है मिलेगा वहीं सुराग़ उसका

दिलों में झाँकना होगा जो उसको ढूँढना है
ये दैहर कहते हैं जिसको नहीं सुराग़ उसका

इस आस्ताने से हट कर नहीं जहाँ में कुछ
जो चाहते हो है मेरी जबीं सुराग़ उसका

सुराग उसका मिलेगा सुराग़ के अन्दर
नहीं है फिर तो कहीं भी नहीं सुराग़ उसका

ख़राबा मिट के भी देता है ख़ू-ए-बू-ए-मकाँ
कहीं नहीं है मगर है कहीं सुराग़ उसका

उसे तलाश न कर तू पुराने ज़ाविए से
सितारा नक़्श है ऐ हम नशीं सुराग़ उसका

मैं आसमान की ख़बरों पे ‘तूर’ क़ादिर हूँ
मैं क्या बताऊँ है ज़ेरे-ज़मीं सुराग़ उसका

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.