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रात / अलेक्सान्दर पूश्किन
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07:08, 25 दिसम्बर 2009
वे मुस्काएँ, और चेतना सुनती यह मेरी
मेरे मीत, मीत प्यारे तुम... प्यार करूँ... मैं हूँ तेरी ...हूँ तेरी!
'''रचनाकाल : 1823'''
</poem>
अनिल जनविजय
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