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नियति / संवर्त / महेन्द्र भटनागर
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|संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर
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<poem>
संदेहों का धूम भरा<br>
साँसें<br>
कैसे ली जायँ !<br><br>
अधरों में<br>
विष तीव्र घुला<br>
मधुरस<br>
कैसे पीया जाय !<br><br>
पछतावे का ज्वार उठा<br>
जब उर में<br>
कोमल शय्या पर<br>
कैसे सोया जाय !<br><br>
बंजर धरती की<br>
कँकरीली मिट्टी पर<br>
नूतन जीवन<br>
कैसे बोया जाय !<br
>
</poem
>
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