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मुबहम बनी रहेगी यूँ ही दो जहाँ की बात / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी
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06:08, 4 जनवरी 2010
करने को हम भी करते हैं सूद-ओ-ज़ियाँ <ref>लाभ-हानि</ref>की बात
ना-आश्ना
-ए-बर्क़े-नतायज
<ref>
परिणामों के वज्रपात
से
अपरिचित
</ref> है बर्क़<ref>बिजली</ref> नतायज<ref>परिणाम
</ref> से बेनियाज़<ref>अनभिज्ञ</ref>
सुनते कहाँ हैं अहले-चमन बाग़बाँ की बात
द्विजेन्द्र द्विज
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