भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुबहम बनी रहेगी यूँ ही दो जहाँ की बात / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुबहम<ref>अस्पष्ट</ref> बनी रहेगी यूँ ही दो जहाँ की बात
जब तक समझ न पाए कोई दरम्याँ <ref>बीच की</ref> की बात

हैं एक ही फ़साने की कड़ियाँ जुदा-जुदा
मेरी जबीं<ref>माथा</ref> की हो कि तेरे आस्ताँ<ref>दहलीज़</ref> की बात

चर्चा है किसका आज लबे-कायनात पर
किससे ये दिल का दर्द बनी कुल जहाँ <ref>समग्र संसार</ref> की बात

अल्लाह ये उड़ान है दिल के ग़ुबार की
अफ़लाक़<ref>आसमान</ref> तक पहुँच के रहेगी फ़ुग़ाँ<ref>रोन</ref> की बात

हैं हसरतों<ref>कामनाओं </ref> के दाग़ रुख़े-माहताब<ref>चाँद के माथे पर</ref> पर
पहुँची कहाँ से चल के कहाँ तक कहाँ की बात

बिखरेंगे ख़ुदफ़रेबी-ए-हस्ती के तारो-पौद
बन कर रहेगी ज़िन्दगी वहमो-गुमाँ की बात

फिरते हैं सीना चाक लिए अपना-अपना ग़म
सुनता नहीं कोई भी कोई भी ग़मे-दोस्ताँ की बात

तिनके क़फ़स के रोने लगे मिल के ज़ार-ज़ार
किसने कही है उन से मेरे आशियाँ की बात

फेरी निगाह उसने भी तक़दीर की तरह
इतनी कहाँ थी तल्ख़<ref>चुभने वाली</ref> दिले-नातवाँ <ref>क्षीण हृदय</ref>की बात

वैसे तो ख़ैर और भी आलम हैं दिल-नवाज़
लेकिन अजब है आलमे-दर्दे-निहाँ की बात

क्यों तीरगी के डर से सितारे हैं माँद-माँद
निकलेगा चाँद होगी शबे-कामराँ की बात

ऐ दोस्त! बेरुख़ी तेरी इक बोझ थी मगर
छोटे-से दिल ने थाम ली कोहे-गराँ <ref>भारी पर्वत</ref>की बात

मफ़हूम<ref>तात्पर्य, अभिप्राय,उद्देश्य</ref> ज़िन्दगी का है कुछ ख़्वाब कुछ ख़्याल
तावील ज़िंदगी है बहारो-ख़िज़ाँ की बात

इक-इक कली चमन की फ़सूँकार <ref>जादूगर</ref>बन गई
जादू जगा गई किसी जादू-बयाँ की बात

होता है मेरी ज़िक्र तो करते हैं लोग याद
बेहतर है मुझसे भी मेरे नामो-निशाँ की बात

लाज़िम नहीं कि अपना भी हो मुद्दआ वही
करने को हम भी करते हैं सूद-ओ-ज़ियाँ <ref>लाभ-हानि</ref>की बात

ना-आश्ना<ref>अपरिचित</ref> है बर्क़<ref>बिजली</ref> नतायज<ref>परिणाम</ref> से बेनियाज़<ref>अनभिज्ञ</ref>
सुनते कहाँ हैं अहले-चमन बाग़बाँ की बात

तब तक घुटा-घुट-सा रहेगा ज़मीं का दिल
जब तक समझ न पाएगी ये आसमाँ की बात

उभरे रहो ख़याल में माअनी के हादसो !
शायद मुझे न याद रहे रफ़्तगाँ की बात

हर चन्द नागवार लगे तुमको दोस्तो!
सुन लो कि काम आएगी पीरे-मुग़ाँ की बात

जब अर्सा-ए-हयात है अहले-ज़मीं पे तंग
ऐसे में क्या सुनेगा कोई आसमाँ की बात

ऐ ‘चाँद’ इस जहान में रहना तो है ज़रूर
अच्छी लगे, लगे न लगे इस जहाँ की बात

शब्दार्थ
<references/>