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14:34, 24 जनवरी 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
यह शहर
मुझे अच्छा लगता है
क्योंकि यहाँ तुम रहते हो
भले ही हमारे घरों के बीच
मीलों का फ़ासला है
भले ही तुम्हें देखे
गुज़र जाते हैं
बरसों - बरस
भले ही हमारे बीच खडी़ है
सैकड़ों दीवारें
भले ही यह शहर
हो गया है असुक्षित
फिर भी तुम्हारी उपस्थिति की सुगन्ध
महकाए रहती है
मेरे रात - दिन
और इसे छोड़ने की कल्पना से दुखता है मन...।
</poem>