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शाख़-ए-बदन को ताज़ा फूल निशानी दे / परवीन शाकिर
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16:33, 30 जनवरी 2010
उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे
कैसी प्यारी ख़ुशबू रात की रानी
दे
बात तो तब है मेरे हर्फ़ में गूँज के साथ
कोई उस लहजे को बात पुरानी दे
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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