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शाख़-ए-बदन को ताज़ा फूल निशानी दे / परवीन शाकिर

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शाख़-ए-बदन को ताज़ा फूल निशानी दे
कोई तो हो जो मेरी जड़ों को पानी दे

अपने सारे मंज़र मुझसे ले ले और
मालिक मेरी आँखों को हैरानी दे

उसकी सरगोशी में भीगती जाए रात
क़तरा-क़तरा तन को नई कहानी दे

उसके नाम पे खुले दरीचे के नीचे
कैसी प्यारी ख़ुशबू रात की रानी दे

बात तो तब है मेरे हर्फ़ में गूँज के साथ
कोई उस लहजे को बात पुरानी दे