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यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है / जिगर मुरादाबादी
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11:18, 31 जनवरी 2010
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है
मर्गे-नाकामे-मोहब्बत<ref>असफल प्रेम मृत्यु</ref>मेरी तक़्सीर<ref>ग़लती</ref>मुआफ़<ref>क्षमा
</ref>
ज़ीस्त<ref>जीवन</ref> बन-बन के मेरे हक़ में क़ज़ा <ref>मृत्यु </ref> आती है
द्विजेन्द्र द्विज
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