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अब न हो शकुनी सफल हर दाँव में / रवीन्द्र प्रभात
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07:48, 4 फ़रवरी 2010
<poem>
भर दे जो रसधार दिल के घाव में,
फिर वही
घूँघरू
घुँघरू
बँधे इस पाँव में !
द्रौपदी बेबस खड़ी कहती है ये
है हर तरफ़ क्रिकेट की चर्चा गरम
बेडियां
बेडियाँ
हॉकी के पड़ गईं पाँव में!
है सफल माझी वही मझधार का
अनिल जनविजय
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