Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> मच रहा है मुल्क मे…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
}}
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
मच रहा है मुल्क में कोहराम क्यों ,

राजपथ पर बुत बने हैं राम क्यों ?


रोज आती है खबर अखवार में ,

लूट, हत्या , खौफ , कत्लेयाम क्यों ?


रामसेतु है जुडा जब आस्था से ,

माँगते फिर भी अरे प्रमाण क्यों ?


सभ्यता की भीत को तुम धाहकर ,

कर रहे पर्यावरण नीलाम क्यों ?


जिनके मत्थे मुल्क के अम्नों - अम्मां,

दे रहे विस्फोट का पैगाम क्यों ?


बोलते हम हो गए होते दफ़न ,

चुप हुये तो हो गए बदनाम क्यों ?


कुछ करो चर्चा सियासी दौर की ,

अब ग़ज़ल में गुलवदन- गुल्फाम क्यों ?


जबतलक पहलू में तेरे है प्रभात ,

कर रहे हो ज़िंदगी की शाम क्यों ?
<poem>