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13:36, 4 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात
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<poem>
किसी दरिया , किसी मझदार से नफरत नहीं करता ।
सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता । ।
यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह -
किसी नुक्कड़ , किसी किरदार से नफरत नहीं करता।
परिन्दों की तरह जिसने गुजारी जिन्दगी अपनी -
गुलाबों के सफ़र में खार से नफरत नहीं करता ।
चलो अच्छा हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा -
नहीं तो इस क़दर पतझार से नफरत नहीं करता।
फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झांकती होती-
मियां परभात तू बीमार से नफरत नहीं करता । ।
<poem>