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यक़ीनन शायरी की इल्म जिसके पास होती वह / रवीन्द्र प्रभात
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किसी दरिया, किसी मझदार से नफ़रत नहीं करता।
सही तैराक हो तो धार से नफरत नहीं करता।।
यक़ीनन शायरी का इल्म जिसके पास होता वह
किसी नुक्कड़, किसी किरदार से नफ़रत नहीं करता।
परिन्दों की तरह जिसने गुज़ारी ज़िन्दगी अपनी
गुलाबों के सफ़र में ख़ार से नफ़रत नहीं करता।
चलो अच्छा हुआ तुमने बहारों को नहीं समझा
नहीं तो इस क़दर पतझार से नफ़रत नहीं करता।
फटे कपड़ों से तेरी आबरू ग़र झाँकती होती
मियाँ परभात तू बीमार से नफ़रत नहीं करता।