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10:23, 27 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार = रसखान
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<poem>
गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि -
:तानि कै चपल चली आनँद-उठान सों ।
वाँए पानि घूँघट की गहनि चहनि ओट,
:चोटन करति अति तीखे नैन-बान सों ॥
कोटि दामिनीन के दलन दलि-मलि पाँय,
:दाय जीत आई, झुंडमिली है सयान सों ।
मीड़िवे के लेखे कर-मीडिवौई हाथ लग्यौ,
:सो न लगी हाथ, रहे सकुचि सुखान सों ॥
</poem>