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04:48, 28 फ़रवरी 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शैलेन्द्र
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[[Category:गीत]]
<poem>मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के
ज़िंदगानी के सफ़र में तू अकेला ही नहीं है
हम भी तेरे हमसफ़र हैं
मुड़ मुड़ के न देख ...
आए गये मंज़िलों के निशाँ
लहरा के झूमा झुका आसमाँ
लेकिन रुकेगा न ये कारवाँ
मुड़ मुड़ के न देख ...
नैनों से नैना जो मिला के देखे
मौसम के साथ मुस्कुरा के देखे
दुनिया उसी की है जो आगे देखे
मुड़ मुड़ के न देख ...
दुनिया के साथ जो बदलता जाए
जो इसके ढाँचे में ही ढलता जाए
दुनिया उसी की है जो चलता जाए
मुड़ मुड़ के न देख ...
</poem>