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03:46, 2 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
जोग को रमावै और समाधि को जगावै इहाँ
::दुख-सुख साधनि सौं निपट निबेरी हैं ।
कहै रतनाकर न जानैं क्यों इतै धौं आइ
::सांसनि की सासना की बासना बखेरी हैं ॥
हम जमराज की धरावतिं जमा न कछू
::सुर-पति-संपति की चाहति न हेरी हैं ।
चेरी हैं न ऊधौ ! काहू ब्रह्म के बबा की हम
::सूधौ कहे देति एक कान्ह की कमेरी हैं ॥48॥
</poem>