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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
प्रथम भुराई प्रेम-पाठनि पढ़ाई उन
::तन-मन कीन्हें बिरहागि के तपेला हैं ।
कहै रतनाकर त्यौं आप अब तापै आइ
::सांसनि की सांसति के झारत झमेला हैं ॥
ऐसे-ऐसे सुभ उपदेश के दिवैयनि की
::ऊधौ ब्रजदेश मैं अपेल रेल-रेला हैं ॥
वे तौ भए जोगी जाइ पाइ कूबरी कौ जोग
::आप कहैं उनके गुरु हैं किधौं चेला हैं ॥70॥
</poem>
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