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15:22, 26 मार्च 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
सुधि-बुधि जाति उड़ी जिनकी उसाँसनि सौं
::तिनकौं पठायौ कहा धीर धरि पाती पर ।
कहै रतनाकर त्यौं बिरह-बलाय ढाइ
::मुहर लगाइ गए सुख-थिर-थाती पर ।
और जो कियौ सौ कियौ ऊधौ पै न कोऊ बियौ
::ऐसी घात घूनी करै जनम-संघाती पर ।
कूबरी की पीठ तैं उपारि भार भारी तुम्हैं
::भेज्यौ ताहि थापन हमारी दीन छाती पर ॥73॥
</poem>