सुधि-बुधि जाति उड़ी जिनकी उसाँसनि सौं
तिनकौं पठायौ कहा धीर धरि पाती पर ।
कहै रतनाकर त्यौं बिरह-बलाय ढाइ
मुहर लगाइ गए सुख-थिर-थाती पर ।
और जो कियौ सौ कियौ ऊधौ पै न कोऊ बियौ
ऐसी घात घूनी करै जनम-संघाती पर ।
कूबरी की पीठ तैं उपारि भार भारी तुम्हैं
भेज्यौ ताहि थापन हमारी दीन छाती पर ॥73॥