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कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं / निदा फ़ाज़ली
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,
01:08, 29 मार्च 2010
हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं
यूँ
,
हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं
भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में
बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं
</poem>
Sandeep Sethi
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