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आधी रात की रोशनी / तसलीमा नसरीन
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15:12, 5 अप्रैल 2010
सामने पा सकती हूँ, अगर सामने कुछ हो
अगर सामने रहे, सामने थोड़ा बहुत
अगर सामने एक-दो
पत्ठर
पत्थर
मिलें
तो मैं पत्थर में पत्थर से ही जला दूंगी आग।
अनिल जनविजय
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