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आधी रात की रोशनी / तसलीमा नसरीन
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पीछे कुछ नहीं, पीछे है ख़ाली घर और खुला मैदान
पीछे है शून्यता, यादों के अँधेरे में तीन सौ तिलचट्टे
पीछे है, भूलचूक, पीछे है नाला-नहर, जिनमें तय है-- गिरना
पीछे है क्रंदन, पीछे कोई नहीं,
पीछे है अंधे की तरह टोहना-टटोलना
सामने पा सकती हूँ, अगर सामने कुछ हो
अगर सामने रहे, सामने थोड़ा बहुत
अगर सामने एक-दो पत्थर मिलें
तो मैं पत्थर में पत्थर से ही जला दूंगी आग।
आग भगाएगी साँप-बिच्छू
मैं पहचान लूँगी पेड़, पहचान लूँगी लता-पत
लेकिन सबसे अच्छा होगा
अगर मैं इन्सान को पहचान सकूँ।
मूल बांग्ला से अनुवाद : मुनमुन सरकार