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14:07, 14 अप्रैल 2010 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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<poem>
हाल कहा बूझत बिहाल परी बाल सबै
::बसि दिन द्वैक देखि दृगनि सिधाइयौ ।
रोग यह कठिन न ऊधौ कहिबै के जोग
::सूधो सौ संदेस याहि तू न ठहरायौ ॥
औसर मिलै और सर-राज कछू पूछहिं तौ
::कहियौ कछू न दसा देखी सो दिखाइयौ ।
आह के कराहि नैन नीर अवगाहि कछू
::कहिबौ कौं चाहि हिचकी लैं रहि जाइयौ ॥94॥
</poem>