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हाल कहा बूझत बिहाल परी बाल सबै / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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हाल कहा बूझत बिहाल परी बाल सबै
बसि दिन द्वैक देखि दृगनि सिधाइयौ ।
रोग यह कठिन न ऊधौ कहिबै के जोग
सूधो सौ संदेस याहि तू न ठहराइयौ ॥
औसर मिलै और सर-राज कछू पूछहिं तौ
कहियौ कछू न दसा देखी सो दिखाइयौ ।
आह के कराहि नैन नीर अवगाहि कछू
कहिबौ कौं चाहि हिचकी लैं रहि जाइयौ ॥94॥