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ज़माने की लहर / माधव शुक्ल

3 bytes removed, 10:56, 29 अप्रैल 2010
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<Poem>
ये दिल में आता है उठ ख्ड़े खड़े हों, समय हमें अब जगा रहा है।
बिला हुए तार भी लहू में, वो तार बर्की लगा रहा है।।
:::जहाँ अँधेरा था मुद्दतों से, न देख सकता कोई किसी को।
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