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|रचनाकार = ज़ैदी जाफ़र रज़ा
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रिश्ता नहीं किसी का किसी फ़र्द से मगर.
आंधी चमन में आई तो सब बेखबर रहे,
कुछ सुर्ख फूल हो गए क्यों ज़र्द से मगर.
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