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फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर
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09:34, 13 मार्च 2007
अधरों में अब है प्यास जगी
बन
बनके
झरना
अब
बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बन मेहदी अब
बनके मेंहदी
रच जाना तुम ।
पैरों
नैनों
में है जो सूनापन
महावर
बन के
काज़ल
सज जाना
तुम
तुम।
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