भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फुरसत से घर में आना तुम / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फुरसत से घर में आना तुम

और आके फिर ना जाना तुम ।


मन तितली बनकर डोल रहा

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।


अधरों में अब है प्यास जगी

बनके झरना बह जाना तुम ।


बेरंग हुए इन हाथों में

बनके मेंहदी रच जाना तुम ।


नैनों में है जो सूनापन

बन के काज़ल सज जाना तुम।