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<poem>
धुंवे धुएँ से भी कभी अंदाज़ कर लेना
जला है क्या..
कभी उड़ते गुब्बारों से समझ लेना
फला है क्या..
दुआ मिटने की मेरे मेरी और कितने
लोग करते है..
कभी उनके गले लग कर समझ लेना
भला है क्या..
</poem>
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