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धुएँ से भी / विजय कुमार पंत
Kavita Kosh से
धुएँ से भी कभी अंदाज़ कर लेना
जला है क्या..
कभी उड़ते गुबारों से समझ लेना
चला है क्या..
कभी तुम देख लेना मन से,
कैसी है
खलिश हम में ..
लरजते होंठ से छूकर समझ लेना
बला है क्या
कभी तुम सोचकर अपनी ही बातों को
उलझ लेना
मेरी खामोशियों को सुन समझ लेना
फला है क्या..
दुआ मिटने की मेरी और कितने
लोग करते है..
कभी उनके गले लग कर समझ लेना
भला है क्या..