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रेत पर चमकती / गुलाब खंडेलवाल
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01:02, 2 जून 2010
यहाँ न रेत है, न मैं हूँ, न मणियाँ हैं,
केवल सन्नाटे में गूँजती ध्वनियाँ हैं.
<poem>
Vibhajhalani
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