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छाया दर्पण / सुमित्रानंदन पंत
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09:10, 4 जून 2010
छाया गहरी पड़ी कलंकित!
दीख
रह
रहा
उगता इसमें
मानव भविष्य का ज्योतित आनन
मानव आत्मा जब धरती पर
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