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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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उगा हुआ है नया चाँद

जैसे उग चुका है हज़ार बार।

आ-जा रही हैं कारें

साइकिलों की क़तारें;

पटरियों पर दोनों ओर

चले जा रहे हैं बूढ़े

ढोते ज़‍िदगी का भार

जवान, करते हुए प्‍यार

बच्‍चे, करते खिलवार।

उगा हुआ है नया चाँद

जैसे उग चुका है हज़ार बार।

मैं ही क्‍यों इसे देख

एकाएक

गया हूँ रुक

गया हूँ झुक!
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