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05:29, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल
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<poem>
रोशनी सब को दिखलाइये
ख़ुद पे भी गौर फरमाइए
आइना हूँ मैं दीवार पर
आइये, देखिये, जाइए
कौन आजाद है इस जगह
अपने शीशे बदलवाइये
लोग बेहद समझदार हैं
मौसमी गीत मत गाइए
रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये
लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए</poem>
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