भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोशनी सब को दिखलाइये / सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
रोशनी सब को दिखलाइये
ख़ुद पे भी गौर फरमाइए
आइना हूँ मैं दीवार पर
आइये, देखिये, जाइए
कौन आजाद है इस जगह
अपने शीशे बदलवाइये
लोग बेहद समझदार हैं
मौसमी गीत मत गाइए
रेत आंखों में भर जायेगी
इस हवा पर न इतराइये
लीजिये मुल्क जलने लगा
अब तो सिगरेट सुलगाइए