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22:22, 10 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= गज़ल / विजय वाते
}}
<poem>
भीगे रुमाल हिलाते लोग,
सूखे मन ले जाते लोग|
होंठों पर षड्यंत्री चुप्पी,
मन की गाँठ दिखाते लोग|
चंदा जाए झूलाघर तो,
घर झूला ला पाते लोग|
आपनी अपनी पीर लिए सब,
रोते लोग रुलाते लोग|
शुद्ध गणित की भाषा मे अब,
गीत गज़ल भी गाते लोग |</poem>