1,005 bytes added,
20:44, 12 जून 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मन का मिलना ही मिलना है तन तो एक बहाना है
तेरा आना ही आना है बाकी आना जाना है
झरने परबत सपने तारे बादल नैया गीत गजल
वो था एक ज़माना अपना ये भी के ज़माना है
इस मेले में इक पल दो पल उस मेले कुछ ज्यादह पल
लौंट चलें अब पीछे यारों सांझ हुई घर जाना है
मंदिर मंदिर मूरत बेबस हर चौगड्ढे मस्जिद चुप
तेरा दर तेरा होना है बाकी खेल पुराना है
</poem>