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मुनिया / दीनदयाल शर्मा
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,
21:09, 16 जून 2010
फिर मुनिया रोती है क्यूँ ।
गुडिय़ा
गुड़िय़ा
इसकी रूठ गई,या
गुडिय़ा
गड़िय़ा
फिर टूट गई ।
टूटी को हम जोड़ेंगे,
अनिल जनविजय
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