भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुनिया / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुनिया रोती ऊँ-ऊँ-ऊँ,
ना जाने रोती है क्यूँ ।

किसने इसको मारा है,
या इसको फटकारा है ।

रोना अच्छी बात नहीं,
फिर मुनिया रोती है क्यूँ ।

गुड़िया इसकी रूठ गई,
या गड़िया फिर टूट गई ।

टूटी को हम जोड़ेंगे,
रूठी है तो रूठी क्यूँ ।

मुनिया को मनाएँगे,
बार-बार बहलाएँगे ।

कारण पूछें रोने का,
मुनिया तू रोती है क्यूँ ।