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08:07, 1 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
एक बादल जो दरअसल एक नम दाढ़ी था
एक बारिश जो थी मेरा टपकता हुआ घर
एक ख्वाब
ऐसा ऊभ-चूभ कि चूता था
भौंहों तक से आंसू सरीखा
एक तलब
इतनी हसीन अपनी बेताबी में
एक फरेब
जानबूझकर कौर की तरह जिसे मुंह में डालते
दिल चूर-चूर हुआ
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