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{{KKRachna
|रचनाकार=कर्णसिंह चौहान
|संग्रह=हिमालय नहीं है वितोशा / कर्णसिंह चौहान
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<poem>

वासंती फूल सा
खिला बच्चा
कभी कभार
सड़क पर
मां से मिल जाता है
हाथ हिलाता है
आंखों में ढ़ूंढता
भूली पहचान
तुरत भाग
बच्चों में खो जाता है।
<poem>
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